एक सरपंच ऐसी भी

Sanjhi Sikhiya
5 min readJan 3, 2023

शुरुआत करने से पहले एक सवाल मैं आपसे पूछना चाहूंगी, कि क्या आपने कभी किसी गांव की सरपंच एक महिला हो, ऐसा सुना है? और अगर सुना है तो क्या उन्हें खुद काम करते हुए देखा है, या फिर अक्सर उनके परिवार का कोई आदमी ही काम करता है?

हिंदुस्तान टाइम्स के एक आर्टिकल के हिसाब से इंडिया के 40% सरपंच महिला है, पर आपके और हमारे अनुभव में इनमे से काफ़ी कम महिलाये होंगी जो खुद से आगे आकर काम करती होंगी।

ये कहानी भी रोपर ज़िले के चक कर्मा गांव की एक महिला सरपंच की है। कुलदीप कौर, जिनकी उम्र 46 साल है, जो आठवीं कक्षा तक पढ़ी है, जो पिछले 4 साल से सरपंच है और जितना मैं उन्हें पिछले एक साल में जान पायी हूँ, वे नये विचारों को अपनाने के लिए हमेशा तैयार रहती है और ज़माने के साथ चलने में विश्वास रखती हैं।

चक कर्मा गांव रोपर शहर से 15 किलोमीटर दूर है। इस गांव का ना तो कोई अपना बस अड्डा है और ना कोई डिस्पेंसरी। साथ ही गांव की उबध खबड़ सड़के भी यहाँ के लोगो का रोज़ का संघर्ष है। ले देकर अगर गांव के पास अपना कुछ है, तो वो है गांव के सरकारी प्राइमरी और मिडिल स्कूल।

आज इस सरकारी प्राइमरी स्कूल में 64 बच्चे पढ़ते है और रोज़ सुबह ये बच्चे कुछ सीखने की चाह में अपने बस्ते में बहुत सारे सपने और उम्मीदे लेकर आते है, पर इन 64 बच्चो के सपने पूरे करने के लिए स्कूल में मौजूद थे सिर्फ एक टीचर।

आप ज़रा इस समस्या का बच्चों पर प्रभाव सोचिये, जब टीचर 2 या 3 क्लास को एक साथ पढ़ाते होंगे तो बाकि 4–5 कक्षा के बच्चे उस दिन क्या ही पढ़कर या सीखकर घर वापिस जाते होंगे।

इन्ही परिस्थितियों के दौरान जब हमने इस स्कूल के साथ काम करना शुरू किया तो इस समस्या को और गहराई से समझकर उस पर बातचीत करने के लिए, हमने बच्चो के माता पिता, स्कूल मैनेजमेंट कमिटी के सदस्य और पंचायत को उनके घर घर जाकर स्कूल में एक ग्राम सिखिया सभा के लिए इक्कठा होने का नियोता दिया। इसी समय मेरी मुलाक़ात कुलदीप कौर जी से हुई, उनके बातों व विचारों ने मुझे काफ़ी प्रभावित किया और मुझे यह समझ आया कि उन्हें स्कूल के विकास के लिए हमारे साथ जोड़ा जा सकता है।

पहली ग्राम सिखिया सभा, सरकारी प्राइमरी स्कूल, चक कर्मा में रखवाई गयी, जिसमें 19 लोग शामिल हुए। मीटिंग के दौरान स्कूल के कई मुद्दों पर लोगो ने अपने विचार साँझा किये व टीचर की कमी के मुद्दे पर भी काफ़ी सुझाव दिए जैसे गांव से ही कोई वालंटियर टीचर रखा जाये या बच्चों के माता पिता थोड़ा समय निकलकर स्कूल में पढ़ाने आ पाए। सरपंच ने भी सबका मनोबल बढ़ाया और हेल्थ और साफ सफाई जैसे अहम मुद्दे पर भी लोगो को जागरूक किया।

ग्राम सिखिया सभा के दौरान सभी ग्रामवासियो ने सहयोग के लिए हामी भारी पर जब इस मीटिंग के कुछ दिनों बाद मैं जब सरपंच कुलदीप जी से मिली तो उन्होंने बताया कि गांव वालो ने इस मुद्दे पर बाद में अपना सहयोग नहीं दिया।

इसके बाद दो बड़ी समस्याएं हमारे आगे थी। पहली, लोगो को साथ लेकर आना व दूसरा स्कूल में टीचर की भर्ती। लोगो को एक जुट करने के लिए हमने सोचा उन्हें शिक्षा को लेकर और ज़्यादा जागरूक करने की ज़रूरत है। शायद जो नुकसान उनके बच्चे झेल रहे थे, टीचर की कमी से, लोगो को उस बात का उतना एहसास नहीं था। जिसके लिए सरपंच और मैंने कई बच्चों के माता पिता के घर घर जाकर उनसे बातचीत करनी शुरू करी। लोगो के साथ एक अच्छा रिश्ता बनाने के लिए मैंने बहुत साधारण सवालों से बातचीत की शुरूआत करी जैसे उनके बच्चों का दिन कैसा बीतता है, माता पिता के लिए शिक्षा का क्या महत्व है, स्कूल की पढ़ाई और अच्छी कैसे हो सकती है, बच्चे बड़े होकर क्या बनना चाहते है, इत्यादि। इसी के दौरान हमने एक और ग्राम सिखिया सभा स्कूल में रखवाई जिसमें हमने लोगो की एक साथ आकर काम करने की ताकत पर बातचीत करी।

डेढ़ से दो महीने की काफ़ी बातचीत के बाद हम गांववालो की पढ़ाई को लेकर जागरूकता बढ़ा पाए और कई लोगो को, ख़ासकर महिलाओं को अपने इस टीचर की कमी के मुद्दे पर अपने साथ जोड़ पाए। और जब लोगो ने सहयोग देना शुरू किया तो सरपंच ने भी फिर एक बड़ा कदम लेने का फैसला किया। सरपंच ने एक सरकारी पत्र लिखा, जिसपर उन्होंने लगभग 50 ग्रामवासियो के हस्ताक्षर करवाये। सिर्फ यही नही वे खुद 4 और औरतों के साथ मिलकर ये पत्र जिला शिक्षा अधिकारी को देने रोपड़ गयी व पूरी स्तिथी उन्हें विस्तार से समझायी। सरपंच कुलदीप कौर जी यही नहीं रुकी जब गांव में एक बार विधायक दिनेश चड्डा जी आये तो कुलदीप जी ने टीचर की कमी की बात उनसे भी साँझा करी।

इन्ही लगातार ग्राम सिखिया सभा, लोगो के साथ जुड़े रहना व सरपंच के प्रयासों की वजह से, उस सरकारी पत्र को भेजनें की करीबन 20 दिन बाद ही स्कूल में आखिरकार एक नयी टीचर की भर्ती हो पायी।

कुलदीप कौर जी जोकि एक काफ़ी सक्रिय सरपंच हैं, ग्राम सिखिया सभा के ज़रिये उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में भी काम करने का मौका मिला और अब इन मीटिंग की ज़रूरतों को समझते हुए व इनकी वजह से आये सकारात्मक बदलावो को देखते हुए उन्होंने ये सिखिया सभा स्वयं करने की ज़िम्मेदारी ली है। और अब उन्होंने स्कूल के विकास के लिए एक ग्राम सिखिया सभा कमिटी का भी गठन किया है। ये कमिटी स्कूल के सुधार के लिए काम कर रही है जिसमे गांववासी या तो आर्थिकतौर पर या अन्य रूप में स्कूल को अपनी सेवा रहे है। और पिछले 3 महीनों में इस कमिटी ने स्कूल सुधार के लिए 3000 रूपये जोड़ लिए है।

अब जब मैं गांव के लोगो से मिलती हूँ, तो वे मेरे साथ बांटते है कि स्कूल में 2 टीचर हो जाने की वजह से बच्चो की पढ़ाई में सुधार देखने को मिल रहा है।

एक बात जो कुलदीप कौर जी हमेशा कहती हैं और जो मेरे लिए भी एक प्रेरणास्त्रोत है, वे कहती हैं,”चाहे मैं आज सरपंच हूँ कल ना भी रहूं, पर मैं अपने लोगो के लिए काम करना कभी नहीं छोडूंगी।”

इस पूरे सफर में मेरी ये सीख रही कि जब लोग साथ आने की ठान ले तो बड़े से बड़े व मुश्किल से मुश्किल मुद्दे भी आसानी से हल हो पाते हैं। मुझे समुदाय से बहुत कुछ सीखने को मिला और जो साथ आने का सार है, उस प्रक्रिया को मैं हर कदम पर देख पायी। और जहाँ लोग अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने में लगे रहते है, शिक्षा को उन सभी के बीच एक बड़ा मुद्दा बनाना और उससे मिली सफलता को देख पाना, मेरे लिए प्रेरणादायक है जोकि मुझे इन सामुदायों के साथ काम करने के लिए हमेशा उत्साह प्रदान करता है।

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Sanjhi Sikhiya

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